Wednesday 23 November 2016

एक था फेंगाड्या पुस्तक के विषय में --लीना मेहेंदळे

एक था फेंगाड्या 
(फेंगाड्या के रूपांतर की भूमिका take from diary no 5 )
पुस्तक के विषय में 
--- लीना मेहेंदळे
        हजारों वर्षों पहले जब आदिमानव गुफा में रहता था, जब उसने केवल आग जलाना और झुण्ड में रहना सीखा था लेकिन गिनती, खेती, वस्त्र, चित्रकला, जख्मी का इलाज आदि से अभी कोसों दूर था, उस जमाने के मानव से आज के मानव तक के उन्ननय का इतिहास क्या है?
        प्रसिद्ध मानववंश शास्त्रज्ञ डॉ मार्गरेट मीड अपने एक लेख में कहती हैं, "ए हील्ड फेमर इज द फर्स्ट साइन ऑफ ह्यूमन सिविलाइजेशन"। डॉ मार्गरेट आगे लिखती हें -- उत्खननों में मानवों की कई हड्डियाँ मिली थीं, जो टूटी हुई थीं। ये वे लोग थे जिनकी हड्डियाँ जानवर के आक्रमण या अन्य दुर्घटना में टूटीं और इस प्रकार असहाय, रूद्धगति बना मनुष्य मौत का भक्ष्य हो गया। कई हड्डियाँ मिली जो अपने प्राकृतिक रूप में थी- अखण्डित। ये वे मनुष्य थे जो हड्डी टूटकर, लाचार होकर नही, वरन्‌ अन्य कारणों से मरे थे। लेकिन कई सौ उत्खननों में, कई हजार हड्डियों में कभी एक हड्डी ऐसी मिली, जो टूटकर फिर जुड़ी हुई थी। यह तभी संभव था जब लाचार बने उस आदमी को किसी दूसरे आदमी ने चार छः महीने सहारा दिया हो, खाना दिया हो, जिलाया हो। जब सबसे पहली बार ऐसा सहारा देने का विचार मनुष्य के मन में आया, वहाँ से मानवी संस्कृती की, करूणा की संस्कृति की, एक दूसरे की कदर करनेवाली संस्कृती की शुरूआत हुई। जाँघ की टूटकर जुड़ी हुई हड्डी साक्षी है उस मनुष्य के अस्तित्व की जिसमें करूणा की धारा, और उसे निभाने की क्षमता पहली बार प्रस्फुटित हुई।
        डॉ. मीड के लेख को पढने के बाद पेशे से डॉक्टर श्री अरूण गद्रे को लगा कि यह एक बड़े ही मार्मिक संक्रमण काल का चिह्न है। कैसा रहा होगा वह मुनष्य, वह हीरो, जिसके हृदय में पहली बार यह दोस्ती और आधार का झरना फूटा होगा।
        डॉ. गद्रे ने इस विषय पर डॉ. पॉल ब्रॅण्ड्ट से चर्चा की। डॉ. ब्रॅण्ड्ट तीस वर्ष तक वेल्लोर के ख्रिश्चन मेडिकल कॉलेज में कुष्ठरोगियों के बीच रहे और उन रोगियोंके गले हुए हाथों पर सर्जरी की पद्धति विकसित करने के लिए प्रख्यात हैं। एक पत्र में ब्रॅण्ड्ट ने गद्रे को ऐसी ही दूसरी कहानी लिखी है- 'कोपेनहेगेन की एक म्यूजियम में छः सौ मानवी मंकाल जतन कर रखे गए हैं। ये सारे कंकाल उन कुष्टरोगियों के हैं जिन्हें पाँच सौ वर्ष पूर्व एक निर्जन द्वीप पर मरने के लिए छोड़ दिया गया था। इन सभी कंकालों के पैर की हड्डियाँ रोग के कारण घिसी हुई हैं। लेकिन इनमें कुछ कंकाल अलग रखे गए हैं क्योंकि उनकी पाँव की हड्डियों पर बाद में भर जाने के चिह्न स्पष्ट हैं। इसलिए कि कुछ मिशनरी उस द्वीप पर गए थे और जितना बन सका उन कुष्ट रोगियों की सेवा की। इसी से कुछ रोगियों के पैर की घिसी हड्डियाँ भर गई। वे अलग रखे गए कंकाल साक्षी हैं उन मिशनरियों की सेवा के।
        डॉ. ब्रॅण्ड्ट से विचार विनिमय के पश्चात डॉ. गद्रे ने जिन संदर्भ ग्रंथों को पठन और मनन किया वे थे -- दि ऍसेन्ट ऑफ मॅन, कॅम्ब्रीज फील्ड गाइड टू प्रीहिस्टोरिक लाइफ, दि डॉन ऑफ ऍनिमल लाइफ, इमर्जन्स ऑफ मॅन, तथा गाइड टू फॉसिल मॅन।
        इन सभी के मंथन और डॉ. गद्रे की अपनी साहित्यिक प्रतिभा से एक उपन्यास के चरित्र तैयार हुए  -- फेंगाडया, बापजी और बाई के चरित्र। उन्हीं से ताना बाना बुना गया एक उपन्यास का -- टोलियों और बस्तीयों के बनने, लडने, उजड़ने और आगे बढ़ने के इतिहासका -- मानवी संस्कृति के विकास का। वही उतरा है एक था फेंगाडया  में।
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